देश को आज़ाद हुए छह दशक से भी ज़्यादा हो चुके हैं. काफी कुछ बदला है हिंदुस्तान में, पर काफ़ी कुछ बदलना अभी बाकी है. आरक्षण जिसका समाज के दबे-कुचले वर्ग के लिए कम से कम नौकरी और पढाई के क्षेत्र में मददगार भूमिका है आज तक उच्च न्यायपालिका में लागू नहीं हो पाया है. कुछ न्यायमूर्तियों द्वारा अपने मातहत न्यायमूर्तियों की नियुक्ति: यही है न्यायिक पदाधिकारियों के चयन की प्रक्रिया. यही वजह है कि आज तक इक्के दुक्के अपवाद को छोड़कर दबे-कुचले तबक़े को उच्च न्यायपालिका में समुचित अवसर नहीं मिला है. देश के मौजूदा मुख्य न्यायमूर्ति श्री के जी बालाकृष्णन भी अपवाद ही हैं.
दलित, दबे-कुचले तबक़े का उच्च न्यायपालिका में समुचित प्रतिनिधित्व न होना भारतीय समाज की कई और विसंगतियों का भी संकेत है. बहरहाल, विस्तृत चर्चा कभी और. देश भर के वकीलों और न्यायपालिका से जुड़े पदाधिकारियों की ओर से आगामी 2-3 मार्च को नयी दिल्ली स्थित मावलंकर हॉल में उच्च न्यायपालिका में आरक्षण की मांग के समर्थन में एक कन्वेंशन का आयोजन किया जा रहा है. आप तमाम लोगों से अपील है कि ज़्यादा से ज़्यादा संख्या में कन्वेंशन में पहुंचे और एक बेहतर न्यायप्रणाली के पक्ष में आवाज़ बुलंद करें.
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