Saturday, July 5, 2008

गिद्ध की दृष्टि से घूरते हैं ...

वृहस्पतिवार, 27 मार्च 2008

विजयकुमारी बहन हैदराबाद की एक झुग्गी बस्ती में घरों में काम करने वाली महिलाओं को संगठित कर रही हैं. जिस बैठक में मैं शामिल होने गयी थी विजय कुमारी बहन भी उसका हिस्सा थीं. राजेश भाई जिन्होंने बैठक का आयोजन किया था ने पहले ही दिन बता दिया था कि बैठक का अंतिम सत्र फील्ड विजिट के साथ होगा, हमलोग उस बस्ती में जाएंगे जिसमें विजय कुमारीजी काम कर रही हैं.
क़रीब 2 बजे ‘रमना मेस’ में तेलुगू भोजन के बाद पन्द्रह लोगों का जत्था बस्ती की ओर रवाना हुआ. पहली बार हैदराबाद में थी इसलिए ठीक ठीक बता पाना मुश्किल है कि किन रास्तों से होते हुए हम जीडी मेटला से वहां पहुंचे थे. बस्ती के बहुत क़रीब आकर राजेश भाई ने विजय कुमारी बहन को फ़ोन करके आगे का रास्ता पूछा था. थोड़ी देर में उनकी बेटी बस्ती के ही किसी नौजवान के साथ मोटर साइकिल पर आ गयीं और हमारी गाड़ी उनके पीछे चल पड़ी. थोड़ी देर में हम उस बस्ती के पास पहुंच गए जिसे राजेश भाई और वहीं के एक पत्रकार मित्र श्रीनिवास भाई ने एशिया की दूसरी सबसे बड़ी झुग्गी बस्ती बताया था.
एक छोटे से कमरे में पैंतीस-चालीस महिलाएं, दो-चार किशोरियां और कुछ बच्चे जमा थे. हमारे समूह में प्रदीप भाई, संतोष भाई, राकेश, किलकारी और मेरे अलावा सभी लोग साथ तेलुगू भाषी थे. तेलुगू भाषी लोगों ने ही उन महिलाओं से बातचीत शुरू की. बीच-बीच में दिल्ली से साथ गयीं डॉ. अजीता और राजेश भाई उनके बीच होने वाली बातचीत का सार हमें हिंदी और अंग्रेजी में बता देते थे. उसी सार को मैं यहां साझा करने की कोशिश करूंगी.
विजयकुमारी बहन हैदराबाद की बस्तियों में विभिन्न मसलों पर पिछले दस-बारह सालों से काम कर रही हैं. स्वास्थ, शिक्षा इत्यादि मसलों पर उन्होंने पहले ट्रेड यूनियनों के साथ भी काम किया है, अब भी करती रहती हैं. इस बस्ती में उनका काम डोमेस्टिक वर्कर्स के बीच है. यह काम ज्यादा पुराना नहीं है. सुनती तो पहले भी रहती थीं वो डोमेस्टिक वर्कर्स की परेशानियों के बारे में पर पहले कभी उन्होंने यह नहीं सोचा था कि उन्हें अलग से इस मसले पर काम करना चाहिए. एक बार किसी घर में एक डोमेस्टिक वर्कर के साथ बहुत ज्यादती हुई. उस महिला के साथ बलात्कार हुआ और फिर उसे मार दिया गया और उसकी लाश भी ग़ायब कर दी गयी. पर क्योंकि वह एक झुग्गी में रहने वाली महिला थी, उस घटना पर कोई ख़ास चर्चा नहीं हुई. मीडिया भी लगभग मौन ही रहा. उसी दौरान दलित फ़ाउंडेशन की ओर से विजयकुमारी जी को कुछ आर्थिक सहायता मिली थी. विजय बहन ने सोचा क्यों न डोमेस्टिक वर्कर्स को एकजुट किया जाए और उन्हें उनके अधिकारों के बारे में जागरूक किया जाए. लड़ाकू तो थी हीं, अनुभव भी था ट्रेड यूनियन के साथ काम करने का; काम शुरू कर दिया उन्होंने. इस बस्ती को चुना. कुछ महिलाओं से बातचीत की. धीरे-धीरे और भी ऐसीं कामकाजी महिलाएं आगे आने लगीं अपनी परेशानियों को लेकर.
ज़्यादातर महिलाओं ने उस दिन बताया कि यौन शोषण का शिकार किसी न किसी रूप में सभी को होना पड़ता है. ‘गिद्ध की दृष्टि से घूरते रहते हैं उस घर के मर्द जहां वो काम करने जाती हैं. कई बार तो ऐसा लगता है कि बस आज यहां से निकल लें तो गनीमत होगी.’ जिस परिवार की औरत कहीं गयी हों वहां के बारे में तो बड़ा कारूणिक अनुभव सुनाया उन महिलाओं ने. एक घटना का जिक्र करते हुए महिलाओं ने बताया कि कैसे एक घरेलू नौकरानी के साथ क़रीब साल भर पहले बलात्कार किया गया और उसकी लाश को कहीं दूर सड़क के किनारे फेंक दिया गया. कोई कार्रवाई भी नहीं हुई. उल्टे पुलिसवालों ने पीडित परिवार को धमकाया और शिकायत न करने का दवाब दिया. इतना ही नहीं पुलिस ने बाद में मध्यस्थता की और एक लाख रुपए में मामले को रफा-दफा कर दिया.
कुछ महिलाओं ने अपने काम के ठिकाने पर मिलने वाली प्रताड़ना के अलावा अपने परिवार में अपने पतियों की करतूतों के बारे में भी बताया कि कैसे उनका पति घर चलाने के लिए एक पैसा नहीं देता है और उनके साथ मार-पीट करता है. एक महिला ने बताया कि विजयकुमारी बहन के साथ जुड़ने से पहले तक रोज़ रात में उसका ऑटो ड्राइवर पति दारू पीकर उसकी पिटाई करता था.
यौन शोषण के अलावा समुचित मेहनताना न मिलने की बात भी महिलाओं ने बताया. दरअसल इस पूरी बर्बरता के पीछे महिलाओं का अपने अधिकारों के प्रति जागरूक न होने की बात उभर कर सामने आयी. अपने तेलुगू भाषी मित्रों ने उन्हें फिर बताया कि आंध्रप्रदेश डोमेस्टिक वर्कर्स अधिनियम के तहत ऐसी महिलाओं के साथ होने वाले दुर्व्यवहार से निपटने के लिए तरह-तरह के प्रावधान हैं. मैंने उन महिलाओं और खासकर विजय कुमारी बहन को यह कहा कि जब भी उन्हें ज़रूरत महसूस हो, मैं उनके साथ अधिकार के मसले पर बातचीत करने के लिए तैयार हूं, ट्रेनिंग देने के लिए तैयार हूं. बाद में उनके साथ फोन की अदलाबदली भी हुई. शायद अगले दौरे में उनके साथ एक पैरालीगल ट्रेनिंग संभव हो पाए.
पर एक बात जो मुझे वहां सबसे अच्छी लगी वो एक कि वे महिलाएं सीखने और अपना अधिकार लेने के लिए किसी भी संघर्ष के लिए तैयार हैं. ये मंशा किसी एक की नही, सारी महिलाओं की थी.

1 comment:

Anita kumar said...

वाह !हमें भी सिखाइए कानून यहां पर । प्लीज वर्ड वेरीफ़ीकेशन हटा दें तो अच्छा , टिप्पणी देने में तकलीफ़ होती है